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केंद्र ने मांगा यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट : रीजनल रेस्पिरेटरी इंस्टीट्यूट के लिए ​केंद्र ने दिए थे 55 करोड़, अब तक नींव भी नहीं डली

Updated on 08-05-2024 12:30 PM

राजधानी में ईदगाह हिल्स स्थित टीबी अस्पताल को रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ रेस्पिरेटरी डिजीज बनाने की घोषणा तो 4 साल पहले हो गई थी, लेकिन अब तक इसकी नींव भी नहीं डल पाई है। केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय ने 55 करोड़ रुपए भी दे दिए। करीब 3 करोड़ तो लोकार्पण कार्यक्रम में खर्च हो गए। शेष राशि अभी भी मध्यप्रदेश सरकार के पास है।

वहीं, केंद्र ने इस मामले में रिमांइडर भेजकर यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट की डिमांड करने से अब इसका जवाब देना अफसरों के लिए मुश्किल हो रहा है। दरअसल, ईदगाह हिल्स की जिस जमीन पर यह रेस्पिरेटरी डिजीज सेंटर बनाया जाना था। वहां नींव भी नहीं डल पाई है।

दूसरी तरफ हमीदिया अस्पताल परिसर में बन रही नई बिल्डिंग में ही रेस्पिरेटरी डिजीज सेंटर बनाने के लिए तैयारियां शुरू हो गई है, लेकिन इतनी कम जगह में संक्रमण होने का खतरा रहेगा। वहीं, हड्डी संबंधी बीमारियों के मरीजों के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर ऑर्थोपेडिक्स बनाया जाना है। इसके चलते आरआईआरडी बनाना मुश्किल हो जाएगा। इस पर विचार चल रहा है।

बता दें कि इंस्टीट्यूट के लिए चार मंजिला नई बिल्डिंग तैयार की जानी थी। इसमें एक ही छत के नीचे वेंटिलेटर, एक्सरे, पैथाेलॉजी, रेडियोलॉजी, अल्ट्रासाउंट, मेडिसिन समेत सभी सुविधा उपलब्ध होगी। यह इंस्टीट्यूट दो साल में बनकर तैयार होने की उम्मीद थी लेकिन अब 52 करोड़ में बनना संभव नहीं है।

गंदगी इतनी कि हाथ धोना भी मुश्किल

टीबी अस्पताल में साफ-सफाई नहीं है। नल के पास गंदगी होने से हाथ धोना मुश्किल है, लेकिन मरीजों को यहां अपने बर्तन धोने पड़ रहे हैं। वाटर कूलर से करंट लग रहा है। पलंग टूटे हैं। कूलर नहीं है, वार्ड में एसी भी चालू नहीं है। हालात ऐसे है कि नार्मल व्यक्ति भी भर्ती न हो पाए लेकिन यहां टीबी के गंभीर मरीजों का उपचार हो रहा है। इधर, अस्पताल के स्ट्रेचर में जंग लगा है। बाथरूम में भी रोजाना साफ-सफाई नहीं होती है।

अभी एक समय में भर्ती हो रहे हैं 218 मरीज, आगे बेड घटाने की तैयारी

हमीदिया परिसर में 75 बेड का आरआईआरडी बनाने की बात चल रही है, जबकि वर्तमान में टीबी अस्पताल में एक समय में 218 मरीज अभी भर्ती हैं। ऐसे में किसी इंस्टीट्यूट को अपग्रेड कर बेड की संख्या बढ़ाना चाहिए लेकिन यहां पहली बार होगा कि बेड की संख्या घटाई जा रही है। गौरतलब है कि देश को 2025 तक टीबी फ्री करने का लक्ष्य रखा गया है।

अगर यहीं स्थिति रही तो 2030 तक भी टीबी मुक्त मध्यप्रदेश नहीं हो पाएगा। इसमें भोपाल , सागर और छिंदवाड़ा के टीबी अस्पताल चिकित्सा शिक्षा को सौंपने की बात कही गई थी। प्रदेश में टीबी मरीजों की गंभीर स्थिति और स्वास्थ्य विभाग के पास विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी के चलते यह निर्णय हुआ। सरकार का कहना है कि मेडिकल कॉलेज के पल्मोनरी विशेषज्ञों की मदद से टीबी पर नियंत्रण पाने में मदद मिलेगी।



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