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ACS की सिफारिश की उड़ाई धज्जियां !

Updated on 11-10-2022 11:05 PM

मंत्रालय गपशप
आशीष चौधरी

ACS की सिफारिश की उड़ाई धज्जियां !
ख्वाब तो मध्य प्रदेश शासन में पड़ा पद पाने की, लेकिन सिफारिश के नाम पर एक ना चली, उल्टे मरीज की जान पर बन आई। जी हां हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के सीनियर आईएएस अधिकारी और राज्य शासन में अपर मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी की। पिछले दिनों मंत्रालय के एक महत्वपूर्ण विभाग के सेक्शन ऑफिसर के पैर का इलाज होना था। सेक्शन ऑफिसर राजधानी के एक प्रतिष्ठित हॉस्पिटल में पहुंचा तो वहां पर अस्पताल प्रबंधन में सेक्शन ऑफिसर का इलाज करने से मना कर दिया। बात जब प्रतिष्ठा पर आ जाए तो सेक्शन ऑफिसर ने अपने वरिष्ठ अधिकारी अपर मुख्य सचिव को फोन लगाया और अस्पताल में भर्ती कराने की गुजारिश की। अपर मुख्य सचिव ने मदद के लिए तत्काल अस्पताल संचालक को फोन लगाया। मोबाइल फोन पर संचालक ने मरीज को भर्ती करने की हामी भी भर दी लेकिन अस्पताल में उसके बाद सेक्शन ऑफिसर के साथ ऐसा बर्ताव हुआ जिसकी उसे उम्मीद नहीं थी। सेक्शन ऑफिसर को भर्ती करने के लिए दोपहर से लेकर रात तक इंतजार कराया लेकिन सेक्शन ऑफिसर अस्पताल में भर्ती नहीं हो पाया और फिर बाद में इलाज करने से अस्पताल प्रबंधन ने मना कर दिया। मजबूरन सेक्शन ऑफिसर परिजनों के साथ घर लौट गया और अगले दिन जब वह उपचार के लिए दूसरे हॉस्पिटल पहुंचा तो उसका पैर सुन्न हो गया था। सेक्शन ऑफिसर अभी उस वक्त को कोस रहा है जब उसने मदद के फोन लगवाया था। बता दें कि अपर मुख्य सचिव, ख्वाब तो प्रशासनिक मुखिया बनने का देख रहे हैं लेकिन IAS लाबी उन्हें कतई पसंद नहीं करती है।
IFS को ताला खोलकर ऑफ़िस में बैठना पड़ा भारी
अखिल भारतीय वन सेवा के एक अधिकारी को तबादले के बावजूद ताला खोलकर ऑफिस में अंगद की तरह जमने की कोशिश करना भारी पड़ गया। वन विभाग ने IFS की इस नाफरमानी भरी करतूत पर अधिकारी को सस्पेंड कर वन मुख्यालय अटैच कर दिया। निलंबन का कारण शासन के आदेश की अवहेलना बताया गया लेकिन वजह कुछ और थी। सूत्र बताते हैं कि वन विभाग ने आईएफएस अधिकारी का तबादला राजधानी से ढाई सौ किलोमीटर दूर किया। अधिकारी ने तबादले को हाईकोर्ट में चुनौती दी तो हाईकोर्ट ने मामले में वन विभाग में अभ्यावेदन पेश करने का आदेश दिया। IFS अधिकारी ने अभ्यावेदन विभाग में पेश किया। अभ्यावेदन पर विचार करते हुए विभाग ने अधिकारी को तबादले वाले स्थान पर ज्वाइन करने का फिर से निर्देश दिया। इसके पहले IFS अधिकारी ने अभ्यावेदन को स्टे मान लिया और आंखें मूंद लीं। हद तो तब हो गई जब आईएफएस अधिकारी अपने ऑफिस का ताला खोलकर बैठ गए और मातहतों पर हुकुम फरमाने लगे। यह बात वरिष्ठ उच्च अधिकारियों को लगी तो उन्होंने भोपाल डीएफओ को IFS अधिकारी को ऑफिस से बेदखल करने का आदेश दे दिया। विभाग के आदेश पर भोपाल डीएफओ तत्काल आईएफएस के ऑफिस पहुंचे और आईएफएस को उनके कक्ष से बाहर करते हुए दूसरा ताला भी जड़ दिया। आपको बता दें जिस आईएफएस अधिकारी को चेंबर से बेदखल किया गया उसकी भोपाल मंडल में तूती बोलती थी।
प्रभारी मंत्री दुविधा में 
राज्य सरकार के जिला प्रभारी मंत्री इन दिनों काफी दुविधा में हैं। दुविधा उनको तबादलों की वजह से हो रही है। वैसे तो सरकार ने 5 अक्टूबर के बाद तबादलों पर रोक के आदेश दिए हैं लेकिन मंत्रियों को अब भी तबादला निरस्त करने या संशोधन करने के लिए पार्टी के नेता या कार्यकर्ताओं के भारी दबाव का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और संगठन की नसीहत भी है कि पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं को महत्व देना है। मंत्रियों ने अपने जिला वाले प्रभार में स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं की सिफारिश पर थोक तबादले किये और उसके आदेश भी जारी हो गए, लेकिन आदेश जारी होने के बाद से जिले के ही दूसरे गुट के कार्यकर्ता और नेता तबादलों को निरस्त करने या उसमें संशोधन करने के लिए प्रभारी मंत्री पर लगातार दबाव बना रहे हैं। कमोवश यही स्थिति सभी जिला प्रभारी मंत्रियों के साथ सामने आ रही है। ऐसे में प्रभारी मंत्री दुविधा में हैं कि किस कार्यकर्ता की मानें और किस नेता की ना माने ? एक और संगठन का चाबुक है तो दूसरी ओर कार्यकर्ताओं की नाराजगी और शिकायतों का डर ?
डेढ़ साल बाद "action" उसपर भी वाह-वाही !
प्रदेश के उच्च नौकरशाहों की चाल की सच्चाई एक बार फिर सामने आई है फिर चाहे मुख्यमंत्री स्वयं क्यों न आदेश या निर्देश दें। नौकरशाह तो अपनी मर्जी के मालिक हैं और उसी तरह कार्य संस्कृति को भी अपनाते हैं। ताजा मामला प्रदेश में हुक्का लाउंज के खिलाफ पुलिस कार्रवाई का है और कार्रवाई के बाद पुलिस की टीम द्वारा अपनी ही पीठ थपथपाने की कोशिश का भी। मुख्यमंत्री ने शनिवार सुबह कानून व्यवस्था की समीक्षा की और 2 अक्टूबर को प्रदेश भर में चल रहे हुक्का लाउंज पर पूर्ण प्रतिबंध के दिए निर्देश पर पालन रिपोर्ट पूछ ली। अफसर इधर उधर बगले झांकने लग गए। सीएम की नाराजगी के बाद नौकरशाहों की मदमस्त हाथियों वाली चाल तेज हो गई। अपर मुख्य सचिव होम ने DGP से बात की। DGP ने अपर मुख्य सचिव को हुक्का लाउंज संचालकों द्वारा कोर्ट की शरण लेने की बात दोहराई। इस पर पड़ोसी राज्यों के हुक्का लाउंज के खिलाफ बने कानून का अध्ययन किया गया और 24 घंटे के अंदर प्रदेश सैकड़ों हुक्का लाउंज और अवैध शराब के कारोबार के खिलाफ कार्रवाई की गई। एक्शन के बाद पुलिस ने अपनी पीठ खुद थपथपाने की कोशिश की। इसमें कोई शक नहीं कि पुलिस ने संयुक्त कार्रवाई की लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने डेढ़ साल पहले भी हुक्का लाउंज में नशा परोसे जाने के खिलाफ कार्रवाई की बात कही थी। तब से पुलिस अधिकारी अब तक नींद में क्यों सोए हुए थे ? डेढ़ साल बाद मुख्यमंत्री के दूसरी बार जगाने पर अधिकारी क्यों एक्शन में आए ? क्या इसकी भी सरकार खोज खबर लेगी ?
सिंधिया के डिनर में तीन मंत्री !
प्रदेश में एक बार फिर डिनर पॉलिटिक्स का दौर शुरू हो गया है। पिछले दिनों भोपाल प्रवास पर आए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के डिनर को लेकर एक बार फिर राजनीति गरमा गई। सिंधिया ने अपने समर्थक मंत्रियों को डिनर पर बुलाया था। साथ ही इस डिनर में तीन अन्य मंत्री भी पहुंचे जिसको लेकर संगठन में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। बताया जा रहा है कि सिंधिया गुट के सभी मंत्री इस डिनर में उपस्थित थे लेकिन राज्य सरकार के तीन कद्दावर मंत्री के शामिल होने से चर्चाओ का दौर चल पड़ा है। सिंधिया ने डिनर भाजपा की एक बड़ी बैठक से पहले दिया जिसके कई मायने भी निकाले जा रहे हैं। भाजपा की इस बैठक में कई मंत्रियों को दरकिनार किया गया था और सिंधिया समर्थक मंत्री इस बैठक में शामिल नहीं हुए थे। बता दें कि तीनों मंत्री ग्वालियर चंबल संभाग के हैं और पिछले कई दिनों से दिल्ली के चक्कर भी काट रहे हैं। 
मंत्री के कालेज में सरकारी ठेकेदार की सप्लाई
राज्य सरकार के एक मंत्री का कॉलेज इन दिनों काफी चर्चा में है। मंत्री जी के निजी कॉलेज में सरकारी ठेकेदार ने लाखों रुपए के फर्नीचर सप्लाई किए हैं और यह सिलसिला लगातार जारी भी है। सूत्र बताते हैं कि विभाग ने ठेकेदार को एक केंद्रीय स्कीम के तहत प्रदेशभर में फर्नीचर सप्लाई का जिम्मा सौंपा है। मंत्री जी ने उसी ठेकेदार को अपने निजी कॉलेज में फर्नीचर सप्लाई का ऑर्डर दे दिया। हैरान, ठेकेदार फर्नीचर प्लाई तो कर दिया लेकिन फर्नीचर के बिल का भुगतान सरकारी आर्डर में समायोजित करने का मौखिक निर्देश दिया है। बता दें कि विभाग को करीब 85 करोड़ के फर्नीचर कई संस्थाओं को सप्लाई करना है। फर्नीचर की खरीद स्थानीय संस्थाओं के स्तर पर होनी थी लेकिन विभाग के अधिकारियों ने मंत्री की जिद पर फर्नीचर सप्लाई का ठेका एक ही ठेकेदार को दे दिया जो विवादों में पड़ सकता है।

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